परिकल्पना : सजीव सारथी
आलेख : सुजॉय चटर्जी
स्वर : मातृका
प्रस्तुति : संज्ञा टंडन
नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओंको समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारेशोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला।दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुनी हैं वर्ष 2024 की फ़िल्म ’तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया’का शीर्षक गीत। राघव, असीस कौर और तनिष्क बागची की आवाज़ें; नीना माथुर और तनिष्क बागची के बोल, तथा राघव व तनिष्क बागची का संगीत। फ़िल्म की अजीब-ओ-ग़रीब कहानी के लिए गायक-संगीतकार राघव के दो दशक पुराने इस गीत के बोल कैसे सार्थक हुए? क्या सम्बन्ध है राघव का इस गीत के गीतकार नीना माथुर के साथ? राघव द्वारा रचे मूल गीत के बनने की क्या कहानी है? उस गीत के साथ इस फ़िल्मी संस्करण के बीच कैसीसमानताएँ व अन्तर हैं? ये सब आज के इस अंक में।
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