अक्सर ऐसा होता है कि हम सोचते कुछ हैं और होता अलग है। कैसे अचानक वक्त करवट लेता है, कैसे अचानक सब यूँ ही राह जाता है। कब ऐसा लगने लगता है कि काश वक्त को मुट्ठी में क़ैद कर लेते, काश वक्त ... ठहर जाता। छोटे छोटे सपने, छोटी छोटी ख़ुशियाँ, मन अरमानों के पंख लगाकर मानो उड़ता फिर रहा हो। डगमग सी डगर पर नाच-कूद रहा हो, हिल्लोरे ले रहा हो। जैसे उसे अतिरेक प्रसन्नता की अनुभूति हुई हो ......
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