kyonki dabbon mein chizein band hoti hain log nahin!
मुझे आजाद रहने दो,
तुम्हारी उस हर सोच से,
जो तुम्हे मुझसे मिलते ही उकसाती है
बनाने के लिए एक खाका मेरा!
मेरे छोटे से शहर का होगा,
एक आम सा साँचा दिल में तुम्हारे,
तुम अब तक मेरे खुले दिमाग को,
अच्छे से जान कहाँ पाए हो ?
वो सौ साल पुराना स्कूल मेरा,
पिछड़ा सा लगता होगा तुमको,
पर मेरी हज़ारों किताबों से भरी,
उसकी लाइब्रेरी क्या अंदाज़ा है तुमको?
मेरे लफ़्ज जब अलग से लगे तुम्हें ,
समझना अपनी जड़ों को छोड़ा नहीं मैंने अब तक ,
किसी अलग विषय पर बात कर लेना मुझसे,
पहनावे को पहचान मत समझना तब तक!
मोजार्ट की समझ मुझ में न हो शायद,
मेरे श्लोक या आयतें ही मेरा ज्ञान हो,
गुलज़ार की नज्में जगजीत की आवाज़,
यहीं मेरे लिए पुरकश सुकून का नाम हो!
बहुत मुश्किल हुई है मुझको,
इतने बरस खुद को खुद सा ही रखने में,
तोड़ दो अपने वह खाके, सांचे सारे,
मुझे सोच के डब्बों से आजाद रहने दो!
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