दशक
एक दशक हो गया कक्षा बारहवीं को।कुछ रिश्ते टूटे, कुछ नाते छूटे और कुछ अधूरे से अब भी साथ चल रहे है।ना जाने किस ज़िद का ये दम भर रहे है।
ज़िद, न मुकम्मल होने की और न ख़त्म होने की,सिने में अपने उस ख़ंजर को सम्भाले थकते भी नहीं,मौक़ा मिलने पर ये सुलह भी करते नहीं।
दस साल में बातें भी कुछ कम-ज़्यादा होती रही,लाज़मी थे शिकवे, मिलने की तमन्ना भी खोती रही।दो तरफ़ा मुहब्बत कभी जागी कभी सोती रही।
क़िस्सों में ज़िक्र करते है, वो अब भी फ़िक्र करते है।बेचैन रातों में वो अक्सर खुदसे लड़ते है,तसवीरों के रास्ते बीते पल जिया करते है।
एक दशक हो गया उस बात को,वक़्त रेत सा बह गया, अधूरी एक दास्तान कह गया।मुक़द्दर में शायद यही लिखा है, ये सोच कर खुद को समझा लिया करते है।
- सचिन
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