स्त्रियों के प्रेम, समर्पण और त्याग की भावना के साथ ही कुछ अनकहा भी होता है उनके जीवन में, जिसे वह कभी व्यक्त नहीं कर पाती और पूरी शिद्दत के साथ ताउम्र अपनी जिम्मेदारियों को निभाती हैं। यह कहानी तरसेम कौर के द्वारा लिखी गई है जिसमें स्त्री जीवन
अमृता प्रीतम को जितनी बार सुना या पढ़ा जाए एक नया सा एहसास करा जाती हैं। उनकी लेखनी ज़मीन से जुड़ी हुई है और जीवन के पहलुओं को खोलती है। अमृता प्रीतम की इस कविता 'एक मुलाकात' में उन्होंने उम्र के एक पड़ाव पर इमरोज़ से होने वाली मुलाकात का ज़िक्
मजाज़' लखनवी का मूल नाम असरारुल हक़ था। उनका जन्म यूपी के रुदौली कस्बे में 1911 में हुआ था। कुल 44 बरस जीनेवाले मजाज़ ने उर्दू शायरी में जो मकाम हासिल किया, वह बहुतों के हिस्से नहीं आया। मजाज़ की मक़बूलियत का आलम यह था कि उनकी नज़्में दूसरी भाष
भारत में आज़ादी आई तब गांधी जी बेलियाघाट की तरफ थे, उधर लोग अपने हिंदू और मुसलमान भाइयों को आपस में मार-काट रहे थे । ऐसे वक़्त में गांधी जी तथा मौजूद सभी को ये लगा कि यह आज़ादी तो वह है ही नहीं, जिसकी हमने ख़्वाहिश की थी। फ़ैज़ को भी यही लगा था
किसी ना किसी वजह से जब हम सभी अपने घरों से दूर रहने को मजबूर होते हैं तो कई मौके या फिर तीज- त्योहार हमें घर के उन पलों की याद दिलाते हैं जो हमने बिताए हैं, ऐसा ही कुछ है सावन के महीने के साथ.. इसकी बारिश की बूंदें हों या महिलाओं का मायके आना,
लोकमान्य बालगंगाधर तिलक जी को "लोकमान्य" का आदरणीय शीर्षक प्राप्त हुआ, जिसका अर्थ है लोगों द्वारा स्वीकृत। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज की मांग उठाई।तिलक अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए भी
गूढ़ बातों को भी आसान शब्दों में सहज अभिव्यक्ति की मुखरता देने वाले भवानी प्रसाद मिश्र उन कवि और साहित्यकारों में एक हैं, जो आपातकाल के विरोध में बेखौफ उठ खड़े हुए थे। उन्होंने अपना कुछ वक्त फ़िल्मी दुनिया में भी बिताया यही कारण है कि आज भी उनक
फ़ैज़ एक ऐसे शायर हैं जिनके लिखे लफ़्ज़ों को आप अपनी रूह के करीब महसूस करते हैं। कई बार इनके लिखे शेर आप चुप चाप गुनगुना लेते हैं कई बार तेज आवाज़ में कहना चाहते हैं। फ़ैज़ तो बस फ़ैज़ हैं।